Monday, 16 September 2013

हिंदी दिवस



3.

" क्या झूठ के मुलम्मे इंसान की औकात बदल सकते हैं ... फिर हिंदी से नफरत क्यूँ ?
हिंदी एक दिन की मेहमान क्यूँ 
हिंदी पर एक दिन का अहसान क्यूँ 
हिंदी के माथे सजे स्वाभिमान की बिंदी 
हमारी जिव्हा सजेगी रहेगी दीर्घ काल तक जिन्दी 
मानसपटल पर संवारना होगा हमे
चिरायु हो उचारना होगा हमे ..
मेरी मात्रभाषा हैं ,सोचने विचारने की भाषा है
मुझे इससे ..इसे मुझसे ढेर सी आशा हैं
हिंदी ..माँ बहन बेटी मेरी अमूल्य थाती है
..भारतीय हूँ मैं ..अहसास दिलाती है
बनकर स्वर जब कलम से उतर जाती है
जिन्दा हूँ कही खुद में अहसास दिलाती है
!"
 -------- विजयलक्ष्मी


2.

हिंदी को अपमानित कौन कर रहा है 
हिंदी का शोषण कर अपना पोषण कौन कर रहा है 
हिंदी को किसी की नौकरानी कौन बना रहा है 
हिंदी को नीचा कौन दिखा रहा हैं 
हिंदी के साथ रहने में कौन लज्जित महसूस कर रहा है 
हिन्दी की जिन्दगी को कम करके उसे एक दिन का मुहताज किसने किया
कौन है जो दे रहा है जहर हिंदी को नित्य प्रति
कौन है जो कर रहा है उसे बिन चिता में बैठाये सती
कौन है जिसने बंधक बना डाला उसे उसे उसके ही घर में
कौन है जो देखना तो चाहता है खूबसूरत मगर देता नहीं संवरने
कौन है इन सबका जिम्मेदार ...सजा उसे दीजिये ..
कौन है जिसे हिंदी के साथ पिछड़ने का डर है
कौन है जो बतायेगा कौन सा उसका असली घर है
मैंने सुना है हिंदी बरसों से चैन से सोई नहीं है
ध्यान दे ...क्या आप तो उनमे से कोई नहीं है ?
"
.-------- विजयलक्ष्मी



1.

गर्वित हो खुद से कहो !

हे भाग्य विधाता तुम अहो !
तुम ही जीवन जीवन संगी हो !
कितनी शब्दों की तंगी हो !
तन मन सब सतरंगी हो !
चहु हमारे हिंदी ,हिंदी हिंदी हो !
हिंदी दिवस किसे मुबारक करे
आपको या हिंदी को जिसका आचरण हमने खा लिया और व्याकरण आपने ..
एक दिन मुबारक देनी हो तो न दे ..
खुद में हिंदी बसानी हो तो ...
अवश्य हिंदी की मुबारकबाद हमे भी दे और हिंदी को भी ...
अन्यथा सरकारी दफ्तर की फाइल की तरह ..
आज याद कल खो जाना है
फिर किसे याद आना है ..
दुनिया का मेला है जो आया है उसे जाना है !!.- विजयलक्ष्मी

हिंदी दिवस की शुभकामनाएं आपको भी और हमे भी ,हमारी हिंदी चिरायु और स्वस्थ रहे इसी आशा और सम्भावना के साथ !!....हम सभी सार्थक हो !- विजयलक्ष्मी 

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