सूरज निकलने को आतुर है
सूरज निकलने को आतुर है ,
धरा से मिलने की मन में आस लिए
कलकल जल बहता स्नेहसिक्त
गुंजित दिशाए कलरव की गुंजार लिए
इन्तजार के पल धडकने लगते है
मन के भीतर नव उजास लिए
लहरे समन्दर की जैसे बुला रही है
धरती तकती राह नयनों में विश्वास लिए .- विजयलक्ष्मी
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