कदम कदम टूटकर गिरता गर विश्वास हो ,
न खुद पर यकीं कहाँ बता घर की आस हो .- विजयलक्ष्मी
वो आस क्या जो रुंध जाये ,वो प्यास क्या जो बुझ जाये
उलझन ए जिन्दगी बेरहम है कोशिशे हजार है सुलझ जाये .- विजयलक्ष्मी
शिद्दत ए अहसास गर जन्म भर की कहूं सच नहीं है ,
अभी कोई कमी तो होगी बाकी मानू गर सच यही है .- विजयलक्ष्मी
न खुद पर यकीं कहाँ बता घर की आस हो .- विजयलक्ष्मी
वो आस क्या जो रुंध जाये ,वो प्यास क्या जो बुझ जाये
उलझन ए जिन्दगी बेरहम है कोशिशे हजार है सुलझ जाये .- विजयलक्ष्मी
शिद्दत ए अहसास गर जन्म भर की कहूं सच नहीं है ,
अभी कोई कमी तो होगी बाकी मानू गर सच यही है .- विजयलक्ष्मी
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