हर काम अधूरा है किया हुआ देश बर्बाद पूरा है ,
इमदाद खाते है नेता , जनता की पीठ पर छुरा है .- विजयलक्ष्मी
लगती है आग घर में अपने घर से किसको मुहब्बत नहीं होती ,
गद्दार वही नमकहरामी करता है जिसे वतन से मुहब्बत नहीं होती .- विजयलक्ष्मी
शब्द और मौन ..
सीखा है मुखर होना सहम कर भी
चीखता है मौन मुर्दों के शहर में अक्सर
और तारी रहता है एक सन्नाटा .- विजयलक्ष्मी
इमदाद खाते है नेता , जनता की पीठ पर छुरा है .- विजयलक्ष्मी
लगती है आग घर में अपने घर से किसको मुहब्बत नहीं होती ,
गद्दार वही नमकहरामी करता है जिसे वतन से मुहब्बत नहीं होती .- विजयलक्ष्मी
शब्द और मौन ..
सीखा है मुखर होना सहम कर भी
चीखता है मौन मुर्दों के शहर में अक्सर
और तारी रहता है एक सन्नाटा .- विजयलक्ष्मी
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