मरा पड़ा है जमीर दरों के भीतर सभी का ,
कोई लुत्फ़ कैसे भला उठाये जिन्दगी का .- विजयलक्ष्मी
कुछ आंसू समेटे कुछ सीप के मोती ,
महकते चमन बेरंग आंसू भी एक मोती .- विजयलक्ष्मी
पत्रकार के साथ बलात्कार ,पत्रकार को मिली मौत ,
दलालों की मण्डी है यहाँ सौदे तो होते ही रहते हैं ..
कभी कागज के टुकड़े मिलते रंग बिरंगे से यहाँ
सरेआम चौराहों पर कभी जिन्दगी के सौदे उड़ते हैं.- विजयलक्ष्मी
कोई लुत्फ़ कैसे भला उठाये जिन्दगी का .- विजयलक्ष्मी
कुछ आंसू समेटे कुछ सीप के मोती ,
महकते चमन बेरंग आंसू भी एक मोती .- विजयलक्ष्मी
पत्रकार के साथ बलात्कार ,पत्रकार को मिली मौत ,
दलालों की मण्डी है यहाँ सौदे तो होते ही रहते हैं ..
कभी कागज के टुकड़े मिलते रंग बिरंगे से यहाँ
सरेआम चौराहों पर कभी जिन्दगी के सौदे उड़ते हैं.- विजयलक्ष्मी
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