शैदा समझती है आज भी दुनिया जिसकी खातिर मुझे ,
वो दबी जुबाँ से भी कभी शनाख्त ए शनासाई कबुलते नहीं .
शहाब है वो जमीं पर शहामत से है उसकी वाकिफ
साहिबे अख़लाक़ ओ साबिर, पनाह शहरखामोशां में कबुलते नहीं .- विजय .
वो दबी जुबाँ से भी कभी शनाख्त ए शनासाई कबुलते नहीं .
शहाब है वो जमीं पर शहामत से है उसकी वाकिफ
साहिबे अख़लाक़ ओ साबिर, पनाह शहरखामोशां में कबुलते नहीं .- विजय .
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