जीवन का लक्ष्य क्या सत्य है असत्य क्या
या पाना जीवन को पूर्णता से किस ठौर
या सह जाना जीवन को कठोरता से जिस तौर
नियमित नियम सा बन जाना हर छोर
खो जाना स्वप्न सजीले सतरंगी या सहरा से सुदीप्त
या प्रचंड ज्वाल ज्वाला ज्वलित हो जीवन को जला रही हो
या श्वेत वर्णा हो श्वेत हो गयी परीक्षा ज्वलंत
आशावादी चोला और भीतर से निराशा लिए विचार
अजब सी पहेली रासायनिक सहेली
समवेत स्वेद कण जीवन का सार
कदम चले उठ
स्मृति स्मरित साथ साथ अबोध सा गर्व गुजित गगन
मन वीणा झंकृत सप्त स्वर सुरीले या अवसाद युक्त
मैं में मैं ही नहीं या अभिभूत समाहित सी विलग
किस पथ चलना पथिक पहचान नहीं
अबूझ चलता है कल्पतरु की इच्छा लिए
तप पाप सत्य असत्य ज्ञान-अज्ञान का अभिमान लिए
विचर रहा जग में जगत जगदीश जन जन में जनचारित अनेक से नाम लिए
क्षण भंगुर जीवन क्षणिका के वशीभूत हुआ
प्रीत विरह मिलन भावों से घनीभूत हुआ
समय चक्र बेल सा बढकर चढ़ता चला राथिवान सा
अंत समय तक रहा ढूंढता अमन चमन के बागवान सा
मैं ही हूँ मैं नहीं कहाँ ..मैं में मैं घनीभूत हुआ
भूल गया छकड़ी सारी नून तेल लकड़ी के वशीभूत हुआ
न सागर न नदिया तीरे नीर नयन अवतीर हुआ
चल छुट गया जमी से जीवन इहलोक उड़ान शमशीर हुआ
अन्तरिक्ष पटल पर परिलक्षित किसने किया
स्वर्ग नर्क कहाँ कैसे वशीभूत चिन्तन चित्त प्राचीर हुआ .- विजयलक्ष्मी
या पाना जीवन को पूर्णता से किस ठौर
या सह जाना जीवन को कठोरता से जिस तौर
नियमित नियम सा बन जाना हर छोर
खो जाना स्वप्न सजीले सतरंगी या सहरा से सुदीप्त
या प्रचंड ज्वाल ज्वाला ज्वलित हो जीवन को जला रही हो
या श्वेत वर्णा हो श्वेत हो गयी परीक्षा ज्वलंत
आशावादी चोला और भीतर से निराशा लिए विचार
अजब सी पहेली रासायनिक सहेली
समवेत स्वेद कण जीवन का सार
कदम चले उठ
स्मृति स्मरित साथ साथ अबोध सा गर्व गुजित गगन
मन वीणा झंकृत सप्त स्वर सुरीले या अवसाद युक्त
मैं में मैं ही नहीं या अभिभूत समाहित सी विलग
किस पथ चलना पथिक पहचान नहीं
अबूझ चलता है कल्पतरु की इच्छा लिए
तप पाप सत्य असत्य ज्ञान-अज्ञान का अभिमान लिए
विचर रहा जग में जगत जगदीश जन जन में जनचारित अनेक से नाम लिए
क्षण भंगुर जीवन क्षणिका के वशीभूत हुआ
प्रीत विरह मिलन भावों से घनीभूत हुआ
समय चक्र बेल सा बढकर चढ़ता चला राथिवान सा
अंत समय तक रहा ढूंढता अमन चमन के बागवान सा
मैं ही हूँ मैं नहीं कहाँ ..मैं में मैं घनीभूत हुआ
भूल गया छकड़ी सारी नून तेल लकड़ी के वशीभूत हुआ
न सागर न नदिया तीरे नीर नयन अवतीर हुआ
चल छुट गया जमी से जीवन इहलोक उड़ान शमशीर हुआ
अन्तरिक्ष पटल पर परिलक्षित किसने किया
स्वर्ग नर्क कहाँ कैसे वशीभूत चिन्तन चित्त प्राचीर हुआ .- विजयलक्ष्मी
आभार
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