Wednesday 4 September 2013

हम हैराँ थे देख कर ,

अंदाज और हुनर उनका हम हैराँ थे देख कर ,
जो ख्याल है आया अभी उनका हाल देखकर .

दस्तक भी दी थी हमने ,पर्दे हया के डालकर ,
वो कहते है समझे न, बयान ए हाल देखकर .

रुखसार से ये पर्दा अब ,कैसे हटायेंगे हम ,
मुश्किल में अटकी जाँ, वक्त ए हालत देखकर .

किसका लिखूं मैं नाम औ पता गुमशुदा हूँ मैं,
इनकार पहचान से उनको ,हमे बेनाम देखकर.

कैसे सुनाऊँ तुमको दिल ए हालत की खबर
उठा था एक तुफाँ सा गया सबकुछ बिखेरकर .- विजयलक्ष्मी

No comments:

Post a Comment