Saturday, 7 September 2013

सता का नया तमाशा...

सता का नया तमाशा होता नित्य थोडा थोडा ,सत्ता का लड्डू खाकर गधा भी बन जाता घोडा .
खबर के बाद ....का एक रंग ,,,,,,थोड़ी देर में धारा एक सौ चवालीस से थोडा सा उपर ...और स्थिति नियन्त्रण ....कुछ की जिन्दगी लीलकर नया तमाशा ..न कोई जाँच न अभियोग न आयोग बस उपयोग और उपभाग |- विजयलक्ष्मी

सत्य की धारा को ,जरा सा तो मोड़ दो ,परचम ए निर्माण सृजन से लाकर जोड़ दो 
नजारे देखने हरियाले गर हल हाथ उठालो ढकोसलों पर थोडा सा ही चिन्तन छोड़ दो
.- विजयलक्ष्मी 

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