Friday, 13 September 2013

न्याय न्याय चिल्लाते हुए चुप

न्याय न्याय चिल्लाते हुए चुप 
छाया अँधेरा घुप 
कोई समझना नहीं चाहता 
ये कैसा दिन निकला है 
जिसने सूरज के सच को निगला है 
दोष एक हर पापी का सजा अलग 
कैसा न्याय कैसा न्यायाधीश 
अब तो भली करें जगदीश
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सवेरा अधूरा है ,
लाज पर दाग गहरा है
जिन्दा है आज भी अभी
वो पांचवा चेहरा है
न्याय अधूरा है
नहीं हुआ ये पूरा है
मोमबत्ती के साथ जले दिल
जलना हिन्दुस्तान पूरा है .


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अभी तो चिंगारी उठी है
अंगार बनना बाकी है 
माचिस जली भी नहीं 
जलनी मशाल बाकी है 
वतन को जला रहे है जो ..
जला दे उन्हें ...
उठनी वो आग बाकी है.- विजयलक्ष्मी

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