न्याय न्याय चिल्लाते हुए चुप
छाया अँधेरा घुप
कोई समझना नहीं चाहता
ये कैसा दिन निकला है
जिसने सूरज के सच को निगला है
दोष एक हर पापी का सजा अलग
कैसा न्याय कैसा न्यायाधीश
अब तो भली करें जगदीश
**********
सवेरा अधूरा है ,
लाज पर दाग गहरा है
जिन्दा है आज भी अभी
वो पांचवा चेहरा है
न्याय अधूरा है
नहीं हुआ ये पूरा है
मोमबत्ती के साथ जले दिल
जलना हिन्दुस्तान पूरा है .
******************
अभी तो चिंगारी उठी है
अंगार बनना बाकी है
माचिस जली भी नहीं
जलनी मशाल बाकी है
वतन को जला रहे है जो ..
जला दे उन्हें ...
उठनी वो आग बाकी है.- विजयलक्ष्मी
छाया अँधेरा घुप
कोई समझना नहीं चाहता
ये कैसा दिन निकला है
जिसने सूरज के सच को निगला है
दोष एक हर पापी का सजा अलग
कैसा न्याय कैसा न्यायाधीश
अब तो भली करें जगदीश
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सवेरा अधूरा है ,
लाज पर दाग गहरा है
जिन्दा है आज भी अभी
वो पांचवा चेहरा है
न्याय अधूरा है
नहीं हुआ ये पूरा है
मोमबत्ती के साथ जले दिल
जलना हिन्दुस्तान पूरा है .
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अभी तो चिंगारी उठी है
अंगार बनना बाकी है
माचिस जली भी नहीं
जलनी मशाल बाकी है
वतन को जला रहे है जो ..
जला दे उन्हें ...
उठनी वो आग बाकी है.- विजयलक्ष्मी
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