बिम्बित बिम्ब नयन परिलक्षित डूबे है समन्दर
कश्ती की दरकार कैसी काश अब उबार लेते तुम !
जर्जर सी नाव अपनी लहरे सुनामी होने लगी है
इन्तजार इतना था काश,नैया सम्भाल लेते तुम !
फूलों की खुशबू सी महकती, बिखर हमारे दरम्याँ
फूल सा मुझको काश ,सूरज बन निहार लेते तुम !
चपल चपला सा अहसास तड़ित बन गुजरता है
बन कर गगन मेरा काश खुद से गुजार लेते तुम !
वक्त की चाल कभी मद्धम कभी तुफाँ सी लगती है
बैठे राह तुम्हारी काश ,एकबार निहार लेते तुम ! विजयलक्ष्मी
बहुत सुन्दर.
ReplyDeleteतहेदिल से बहुत बहुत शुक्रिया
Deleteबहुत सुन्दर !
ReplyDeletelatest post: क्षमा प्रार्थना (रुबैयाँ छन्द )
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तहेदिल से बहुत बहुत शुक्रिया
Deleteचपल चपला सा अहसास तड़ित बन गुजरता है
ReplyDeleteबन कर गगन मेरा काश खुद से गुजार लेते तुम...
वाह सुन्दर शब्द संयोजन ... अच्छे भाव लिए हैं सभी शेर ...
प्रोत्साहनार्थ तहेदिल से बहुत बहुत शुक्रिया
Deleteबहुत बेहतरीन शब्द संयोजन के साथ गहन भाव लिए सुन्दर प्रस्तुती। समय कभी काटे नहीं कटता तो कभी कब गुजर गया मालूम ही नही पड़ता।
ReplyDeleteplease remove comments word verifiation...IF ANY HELP CONTECT US
प्रोत्साहनार्थ भावपूर्ण शब्दों के लिए तहेदिल से बहुत बहुत शुक्रिया
Deleteअनन्त जी नमस्कार ,आपके द्वारा प्रदत्त सम्मान के लिए तहेदिल से आभारी है |
ReplyDeleteतहेदिल से आपका बहुत बहुत शुक्रिया
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