Sunday, 15 September 2013

काश ,एकबार निहार लेते तुम..
























बिम्बित बिम्ब नयन परिलक्षित डूबे है समन्दर 
कश्ती की दरकार कैसी काश अब उबार लेते तुम !

जर्जर सी नाव अपनी लहरे सुनामी होने लगी है 
इन्तजार इतना था काश,नैया सम्भाल लेते तुम !

फूलों की खुशबू सी महकती, बिखर हमारे दरम्याँ
फूल सा मुझको काश ,सूरज बन निहार लेते तुम !

चपल चपला सा अहसास तड़ित बन गुजरता है 
बन कर गगन मेरा काश खुद से गुजार लेते तुम !

वक्त की चाल कभी मद्धम कभी तुफाँ सी लगती है 
बैठे राह तुम्हारी काश ,एकबार निहार लेते तुम 
 !    विजयलक्ष्मी 

10 comments:

  1. Replies
    1. तहेदिल से बहुत बहुत शुक्रिया

      Delete
  2. Replies
    1. तहेदिल से बहुत बहुत शुक्रिया

      Delete
  3. चपल चपला सा अहसास तड़ित बन गुजरता है
    बन कर गगन मेरा काश खुद से गुजार लेते तुम...
    वाह सुन्दर शब्द संयोजन ... अच्छे भाव लिए हैं सभी शेर ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. प्रोत्साहनार्थ तहेदिल से बहुत बहुत शुक्रिया

      Delete
  4. बहुत बेहतरीन शब्द संयोजन के साथ गहन भाव लिए सुन्दर प्रस्तुती। समय कभी काटे नहीं कटता तो कभी कब गुजर गया मालूम ही नही पड़ता।
    please remove comments word verifiation...IF ANY HELP CONTECT US

    ReplyDelete
    Replies
    1. प्रोत्साहनार्थ भावपूर्ण शब्दों के लिए तहेदिल से बहुत बहुत शुक्रिया

      Delete
  5. अनन्त जी नमस्कार ,आपके द्वारा प्रदत्त सम्मान के लिए तहेदिल से आभारी है |

    ReplyDelete
  6. तहेदिल से आपका बहुत बहुत शुक्रिया

    ReplyDelete