Tuesday, 17 September 2013

हो रही है राजनीति लाशों के ढेर पर ,

हो रही है राजनीति लाशों के ढेर पर ,
खा रहा है इन्सां इंसानियत बेचकर .

पढ़ेलिखे है गर जाहिलो सा हाल क्यूँ 
हैवानियत देखो हंस रहे गला रेतकर.

गद्दी की खातिर अपनी टोपी बेच दी 
गद्दार वो भी वोट दी सामान देखकर .

सस्ता अनाज, मोबाइल और लैपटॉप
खूनपसीने की कमाई से टैक्स पेलकर .

पूछो सरकारी विद्यालय से परहेज क्यूँ
क्यूँ किया अपोइन्टमेंट जाति देखकर .

वक्ती सुविधा नहीं अब न सूट न पैसा
अब चुनेंगे नेता भी कामकाज देखकर .

सिखाओ सबक चुनाव की पाठशाला में
कैसी सरकार, मिले स्वाभिमान बेचकर !- विजयलक्ष्मी

2 comments:

  1. आपका बहुत बहुत आभार !!

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  2. सुन्दर-सार्थक अभिव्यक्ति....

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