हो रही है राजनीति लाशों के ढेर पर ,
खा रहा है इन्सां इंसानियत बेचकर .
पढ़ेलिखे है गर जाहिलो सा हाल क्यूँ
हैवानियत देखो हंस रहे गला रेतकर.
गद्दी की खातिर अपनी टोपी बेच दी
गद्दार वो भी वोट दी सामान देखकर .
सस्ता अनाज, मोबाइल और लैपटॉप
खूनपसीने की कमाई से टैक्स पेलकर .
पूछो सरकारी विद्यालय से परहेज क्यूँ
क्यूँ किया अपोइन्टमेंट जाति देखकर .
वक्ती सुविधा नहीं अब न सूट न पैसा
अब चुनेंगे नेता भी कामकाज देखकर .
सिखाओ सबक चुनाव की पाठशाला में
कैसी सरकार, मिले स्वाभिमान बेचकर !- विजयलक्ष्मी
खा रहा है इन्सां इंसानियत बेचकर .
पढ़ेलिखे है गर जाहिलो सा हाल क्यूँ
हैवानियत देखो हंस रहे गला रेतकर.
गद्दी की खातिर अपनी टोपी बेच दी
गद्दार वो भी वोट दी सामान देखकर .
सस्ता अनाज, मोबाइल और लैपटॉप
खूनपसीने की कमाई से टैक्स पेलकर .
पूछो सरकारी विद्यालय से परहेज क्यूँ
क्यूँ किया अपोइन्टमेंट जाति देखकर .
वक्ती सुविधा नहीं अब न सूट न पैसा
अब चुनेंगे नेता भी कामकाज देखकर .
सिखाओ सबक चुनाव की पाठशाला में
कैसी सरकार, मिले स्वाभिमान बेचकर !- विजयलक्ष्मी
आपका बहुत बहुत आभार !!
ReplyDeleteसुन्दर-सार्थक अभिव्यक्ति....
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