Wednesday, 4 September 2013

गजल से निकलती है गजल

आ गजल की बात करूं तो गजल से निकलती है गजल ,
वो हंसीं..,तो है गजल और बिखर के निखरती है गजल .

देखे इकबार नजर उठा गर हर लम्हे में संवरती है गजल ,
हैरान परेशान नहीं हूँ तेरी हर बात में बिखरती है गजल .

ओस शबनमी तेरी पलकों से मोती सी ढलकती है गजल
बनके महक फूलों की तेरी मेरे हर और संवरती है गजल.

किसी पर्दानशीं की बात करू तो होठो पे उभरती है गजल ,
उनकी हंसी सुरत मन की पाकीजगी भी लगती है गजल .

गजल कहने की बात निकली ...कलम लिखती है गजल ,
उनकी हर अदा है ...गजल वो नजर को दिखती है गजल .- विजयलक्ष्मी

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