Monday, 23 September 2013

अख़बार का पन्ना फडफड़ा कर रह गया दर्द से

मजबूर हो जाये इन्सान सोचने पर और अंदर तक हिला जाए दुनिया की खबर 
क्या है जिहाद ये कैसा जिहाद है कौन है ठेकेदार इस जिहाद की खबर 
केन्या की खबर या सीरिया की खबर देखलो पलट कर हिंदुस्तान की खबर 
फतवों की खबर हालत की खबर खुनी हमलो की भरी तस्वीर की खबर 
देश की पढ़े या विदेश की खबर यहाँ तो छनछन कर ही आती है खबर 
बिका हुआ मिडिया बाजार है लगा जिसके हाथ लाठी हाथ उसी के है खबर 
बिखरी हुयी है लाशें बहता हुआ लहू है मर रही इंसानियत की खबर
नुचती हुयी देह चीखती हुयी रूह बंद हैं दरवाजे फिर भी उठती हुयी खबर
बंदूक की नोक पर बम की झोक पर बनती हुयी खबर
न उम्र देखता कोई महज पैशाचिक पृवत्ति सर धुनती हुयी खबर
बनी जिन्दगी इम्तेहान जिन्होंने तस्वीर खींच ली बन रही है अब उनकी ही खबर
अख़बार का पन्ना फडफड़ा कर रह गया दर्द से... लिखते हुए खबर
चीखकर रूह कांपती है दर ब दर सी नजर में भर कर खबर
हर ख्वाब टूटा है इंसानियत के भीतर जहां पुष्प थे लाश आई नजर
कुंद होता है दिमाग ..जब देखते हो आँखों से लहुलुहान खबर
पत्रकारिता का जज्बा ईमान पर छा जाये तो जिहाद बन जाती है खबर .- विजयलक्ष्मी

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