पाषण और निष्पक्ष ..कदापि नहीं
लुडके तो बस लुडके और लुडकते चले गये
पाषण जो ठहरे
न सही न गलत ..निष्पक्ष कहाँ
बेदर्द ...सहता है ..कहता नहीं
रक्तिम निशाँ और एक टीस देता है बिन बोले
काव्य प्रवाह में पाषण ..
पाकीजगी दर्दीली सी ..
बस सहते जाओ ...सहते जाओ
चुपचाप ..निष्प्राण हो
बस वही एक मात्र ..पाषण !- विजयलक्ष्मी
लुडके तो बस लुडके और लुडकते चले गये
पाषण जो ठहरे
न सही न गलत ..निष्पक्ष कहाँ
बेदर्द ...सहता है ..कहता नहीं
रक्तिम निशाँ और एक टीस देता है बिन बोले
काव्य प्रवाह में पाषण ..
पाकीजगी दर्दीली सी ..
बस सहते जाओ ...सहते जाओ
चुपचाप ..निष्प्राण हो
बस वही एक मात्र ..पाषण !- विजयलक्ष्मी
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