Wednesday, 25 September 2013

न मैं ख्वाब हूँ कोई कह. क्या तू हकीकत है

न मैं ख्वाब हूँ कोई कह. क्या तू हकीकत है ,
नैन बंद हो भी जाये कैसे नींद की बसीकत है 

अँधेरा गहन सूखे दरख्तों के दर ओ दीवार है 
दीप देहलीज का लगाएगा आग ही हकीकत है 

जलने दोगे , मेरे बाद भी जलोगे अहसास में
बुझाने चलोगे , जलोगे साथ यही हकीकत है

आब ए चश्म कातर धुंधलाई सी रौशनी क्यूँ
वक्त के आंचल पे लिखी तेरे नाम वसीयत है

तराशा जिस बुततराश ने, मुझमें जान फूंक दी
वही तासीर ए तस्वीर छप बन गयी हकीकत है .- vijaylaxmi
 

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