Monday, 9 September 2013

न सोच घर जला है मेरा , तो मेरा ही जलेगा ,

न सोच घर जला है मेरा , तो मेरा ही जलेगा ,
हाँ ,घर तो फूस का ही ,तुम्हारा भी है दोस्तों .

आज फ़ैल रही है आग जो बहकर मेरी गली 
इस गली के मुहाने घर , तुम्हारा भी है दोस्तों .

बना रहा जो तमाशा यहाँ मेरे घर की आग का 
होना चौक में कल तमाशा तुम्हारा भी है दोस्तों .

दरकार ए चैन औ अमन जितनी मुझे है आज 
हक ए दुआ में हाथ उठना तुम्हारा भी है दोस्तों.

खलिश मेरे दिल में अभी है बस इस बात की ,
बहा लहू जिसका ,वतन तुम्हारा भी है दोस्तों .- विजयलक्ष्मी

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