खुशबू सी बिखरी हैं यहाँ गुजरा इधर से कौन है ,
दूर तक बिखरा है रंग और तारागण ये मौन है
बयार बह चली मलय सी मद्धम स्वर हैं गूंजते
मुस्कुराती नजर पुष्पित चमन ये चितेरा कौन है
रंग रहा जिस स्वप्न को पलकों में आकर बस गया
भोर बेला संग में सूरजकिरण, तितली हुआ मौन है .
--विजयलक्ष्मी
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