Saturday, 28 September 2013

"शहीद ए आजम भगत सिंह "की स्वर्णिम याद में





सभी छैला हुए जाते है आजकल ,सरहद कहो चलना है किसे ,

कदम आगे बढाये वही अब जान प्यारी न हो जिसे ..
हमे खरीदने वाले खुद बिक गये है बाजार में 
हमे दौलत नहीं प्यारी, की तलवार से यारी 
चोला बसंती रंग रहे हैं अपना भी और बदल डाला है स्याही को लहू के संग 
अब वक्त कैसा आया है बेच रहे है ईमान ..कभी अनजाम ए मौत भाती थी 
भगत , आजाद के देश में लगी कौन दीमक जिसपर औलादे जान लुटाती थी 
तुम आओगे तो गद्दार कहाओगे ...और लक्ष्मी बाई भी मारी जायेगी
मुर्दों की बस्ती है ...यहा बस जान ही सस्ती है ...
कभी धन के लिए कभी धर्म के नाम पर ..
कभी मतलब की खातिर कभी बिकते ईमान पर
यहाँ मण्डी सजी है
हम बिकते रहे रोज हिज्जो हिज्जों में ..
ख्वाब बस एक ही रास आया है मौत का चलो खरीद लेते हैं
उसमें लटकर चौराहे चलो सलीब को उठाये वतन की गलियों में एक चक्कर लगाले
जब चलना चाहो चले आओ ..
हमे एक आवाज तो देना ..बाकी कुछ नहीं लेना ...
कुछ टुकड़े समेटेंगे ..कुछ कतरा याद है सांसे छूट जाएगी
रूह चली जाएगी जब घर अपने देह को जलाकर अंतिम विदा देना
बिक बिककर जितने बचे है शेषफल भेज देते हैं तुम्हारे पास .- विजयलक्ष्मी

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