जिन्दगी क्यूँकर सवाल है ,,
क्यूँ तुम बिन लगे बेहाल है ||
अंखियों में तुम हो सांवरे
तुम बिन अश्क का उबाल है||
चाँद बिन अँधेरी रात हुई
हाँ ,ये मौसम ही नागंवार है||
ये तन्हाई लम्बी रातो से
खुशियों का पड़ा अकाल है ||
गुनाहगारी लिख दो नाम
हम यहीं तो हमख्याल है ||
ए जिन्दगी तुम भी खूब हो
क्या मुस्कान इक मलाल है ||
सदके में तेरे सबकुछ दिया
हुई अब जीस्त भी निहाल है ||
जख्म मेरे क्यूँ रख दू गिरवी
दर्द करता रफू भी कमाल है ||
सूरज चंदा अजब साथ बिन
फूलों का खिलना मुहाल है ||
---------- विजयलक्ष्मी
क्यूँ तुम बिन लगे बेहाल है ||
अंखियों में तुम हो सांवरे
तुम बिन अश्क का उबाल है||
चाँद बिन अँधेरी रात हुई
हाँ ,ये मौसम ही नागंवार है||
ये तन्हाई लम्बी रातो से
खुशियों का पड़ा अकाल है ||
गुनाहगारी लिख दो नाम
हम यहीं तो हमख्याल है ||
ए जिन्दगी तुम भी खूब हो
क्या मुस्कान इक मलाल है ||
सदके में तेरे सबकुछ दिया
हुई अब जीस्त भी निहाल है ||
जख्म मेरे क्यूँ रख दू गिरवी
दर्द करता रफू भी कमाल है ||
सूरज चंदा अजब साथ बिन
फूलों का खिलना मुहाल है ||
---------- विजयलक्ष्मी
बहुत खूब।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteसादर
वाह उम्दा रचना सहज सरल लय बद्धता।
ReplyDeleteवाह!!!
ReplyDeleteलाजवाब !! बहुत खूब ।
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