आओ क्यूँ न इस रात फिर जलकर महक लिया जाये ,
पंछी तो नहीं हूँ लेकिन ...चिरैया सा चहक लिया जाये .
चाँद चल दिया चांदनी संग सूरज ओढ़ समन्दर सोया ,
तमन्ना बोल उठी ...तन्हा यादों संग बहक लिया जाये .
खनकते हुए अहसास बिखरे हैं नजारों में हर तरफ मेरे ,
छनकी है सुरलहरी ..मद्धम सी मदिर लहक लिया जाये .
राख के ढेर भी कुरेदने में लगा सुखनवर है या सरफरोश,
न हो कोई चिंगारी भडक उठे ... चलो दहक लिया जाये . -- विजयलक्ष्मी
पंछी तो नहीं हूँ लेकिन ...चिरैया सा चहक लिया जाये .
चाँद चल दिया चांदनी संग सूरज ओढ़ समन्दर सोया ,
तमन्ना बोल उठी ...तन्हा यादों संग बहक लिया जाये .
खनकते हुए अहसास बिखरे हैं नजारों में हर तरफ मेरे ,
छनकी है सुरलहरी ..मद्धम सी मदिर लहक लिया जाये .
राख के ढेर भी कुरेदने में लगा सुखनवर है या सरफरोश,
न हो कोई चिंगारी भडक उठे ... चलो दहक लिया जाये . -- विजयलक्ष्मी
सुन्दर रचना।
ReplyDeleteपढ़कर अच्छा लगा।
सुंदर रचना !
ReplyDeleteचाँद चल दिया चांदनी संग सूरज ओढ़ समन्दर सोया ,
ReplyDeleteतमन्ना बोल उठी ...तन्हा यादों संग बहक लिया जाये .
ye khas lagaa ...vaah
स्वागत है आप सभी का
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