पुरानी गुजरी हुयी कुछ यादे सिमटी है मुझमे ,
या कह दूं चस्पा है कुछ इस तरह
उतारे से भी नहीं उतरेंगी ..
मेरे दरवाजे से तेरे शहर तक जो रास्ता है न
कितनी बार चली जाती हूँ उसी मोड़ तक
तुमसे मिलने की चाहत लिए लौट आई थी
कुछ असमंजस ...कुछ अनजाना सा डर... तुम से .........नहीं.. नहीं.. खुद से
कुछ तो था जो दरमियाँ है आज भी
लो झुक गयी पलकें ..उसी अहसास में तुम सामने खड़े हो जैसे ...
मालूम है नहीं हो तुम ...परछाई है मेरी ही
और तुम दौड़ने लगते हो रगों में लहू बन
टकराते हो दीवार पर मुझमे ही बसे यंत्र से तन्त्र पर जिसे दिल कहते हैं
लिख देते हो वही एक नाम बार बार "अपना "
सरोकार कदमों को न सही रूह को है मेरी औ तुम्हारी ...
परछाई किसकी कौन ..तुम ..हाँ ,तुम ही हो
दूरतक कोई नहीं दीखता ...
यही सच है
पुरानी गुजरी हुयी कुछ यादे सिमटी है मुझमे ,
या कह दूं चस्पा है कुछ इस तरह
उतारे से भी नहीं उतरेंगी ..-विजयलक्ष्मी
या कह दूं चस्पा है कुछ इस तरह
उतारे से भी नहीं उतरेंगी ..
मेरे दरवाजे से तेरे शहर तक जो रास्ता है न
कितनी बार चली जाती हूँ उसी मोड़ तक
तुमसे मिलने की चाहत लिए लौट आई थी
कुछ असमंजस ...कुछ अनजाना सा डर... तुम से .........नहीं.. नहीं.. खुद से
कुछ तो था जो दरमियाँ है आज भी
लो झुक गयी पलकें ..उसी अहसास में तुम सामने खड़े हो जैसे ...
मालूम है नहीं हो तुम ...परछाई है मेरी ही
और तुम दौड़ने लगते हो रगों में लहू बन
टकराते हो दीवार पर मुझमे ही बसे यंत्र से तन्त्र पर जिसे दिल कहते हैं
लिख देते हो वही एक नाम बार बार "अपना "
सरोकार कदमों को न सही रूह को है मेरी औ तुम्हारी ...
परछाई किसकी कौन ..तुम ..हाँ ,तुम ही हो
दूरतक कोई नहीं दीखता ...
यही सच है
पुरानी गुजरी हुयी कुछ यादे सिमटी है मुझमे ,
या कह दूं चस्पा है कुछ इस तरह
उतारे से भी नहीं उतरेंगी ..-विजयलक्ष्मी
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (30.01.2015) को ""कन्या भ्रूण हत्या" (चर्चा अंक-1873)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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