" सुर संगीत से सजी दीपावली
स्नेहरस में पगी दीपावली
खुशियों से भीगी दीपावली
रीतो में ढलकी दीपावली
अपनेपन से छलकी दीपावली
मलय सी बहकी दीपावली
चिरैया सी चहकी दीपावली
पुष्पित शाख सी महकी दीपावली
पलको में निखरती दीपावली
ह्रदय आगार में उतरती दीपावली
इन्द्रधनुष से रंगती दीपावली
तारो संग अम्बर में टकती दीपावली "
तारो संग अम्बर में टकती दीपावली "
--- विजयलक्ष्मी
"दीप तो दुनिया जलाती है ,जलती रहेगी ,
इन्ही दीपो से क्यूँ न मशाल जलाई जाये
सत्य की रौशनी बिखरे कदम कदम पर
झूठ की लाश हर आंगन से उठाई जाए
बहुत गंदी सी तस्वीर जिसपर धुल जमी
स्वच्छ भारत की नई तस्वीर बनाई जाये"
इन्ही दीपो से क्यूँ न मशाल जलाई जाये
सत्य की रौशनी बिखरे कदम कदम पर
झूठ की लाश हर आंगन से उठाई जाए
बहुत गंदी सी तस्वीर जिसपर धुल जमी
स्वच्छ भारत की नई तस्वीर बनाई जाये"
------विजयलक्ष्मी
दीप जलाने की प्रथा के पीछे अलग-अलग कारण या कहानियाँ हैं ---
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". राम भक्तों के अनुसार दीवाली वाले दिन अयोध्या के राजा राम लंका के अत्याचारी राजा रावण का वध करके अयोध्या लौटे थे। उनके लौटने कि खुशी मे आज भी लोग यह पर्व मनाते है।
कृष्ण भक्तिधारा के लोगों का मत है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी राजा नरकासुर का वध किया था।इस नृशंस राक्षस के वध से जनता में अपार हर्ष फैल गया और प्रसन्नता से भरे लोगों ने घी के दीए जलाए।
एक पौराणिक कथा के अनुसार विंष्णु ने नरसिंह रुप धारणकर हिरण्यकश्यप का वध किया था[5] तथा इसी दिन समुद्रमंथन के पश्चात लक्ष्मी व धन्वंतरि प्रकट हुए।
जैन मतावलंबियों के अनुसार चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी का निर्वाण दिवस भी दीपावली को ही है।
सिक्खों के लिए भी दीवाली महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसी दिन ही अमृतसर में १५७७ में स्वर्ण मन्दिर का शिलान्यास हुआ था।और इसके अलावा १६१९ में दीवाली के दिन सिक्खों के छठे गुरु हरगोबिन्द सिंह जी को जेल से रिहा किया गया था।
नेपालियों के लिए यह त्योहार इसलिए महान है क्योंकि इस दिन से नेपाल संवत में नया वर्ष शुरू होता है।
पंजाब में जन्मे स्वामी रामतीर्थ का जन्म व महाप्रयाण दोनों दीपावली के दिन ही हुआ। इन्होंने दीपावली के दिन गंगातट पर स्नान करते समय 'ओम' कहते हुए समाधि ले ली |
महर्षि दयानन्द ने भारतीय संस्कृति के महान जननायक बनकर दीपावली के दिन अजमेर के निकट अवसान लिया। इन्होंने आर्य समाज की स्थापना की।
दीन-ए-इलाही के प्रवर्तक मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल में दौलतखाने के सामने ४० गज ऊँचे बाँस पर एक बड़ा आकाशदीप दीपावली के दिन लटकाया जाता था। बादशाह जहाँगीर भी दीपावली धूमधाम से मनाते थे। मुगल वंश के अंतिम सम्राट बहादुर शाह जफर दीपावली को त्योहार के रूप में मनाते थे और इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रमों में वे भाग लेते थे। शाह आलम द्वितीय के समय में समूचे शाही महल को दीपों से सजाया जाता था एवं लालकिले में आयोजित कार्यक्रमों में हिन्दू-मुसलमान दोनों भाग लेते थे।"
"दीपावली शुभ और मंगलमय !!"
" दीपक और बाती वाले से
न चिक चिक न खिटखिट ..
और तुम ....
रौशनी जैसे भी करो ...
मगर ..याद है न ..
पूजा तो माटी के दीप से ही होती है
उसका दिल दुख तो ..
पूजा व्यर्थ ..
मेहनताना तो पूरा दो
वो प्रभु और तुम्हारे बीच तारतम्य स्थापित करता है
उसके आंसूं निकले तो ..
मुस्कान नहीं आंसू ...हिस्सेदार होंगे
याद रखना ..
पूजा .
.माटी के दीप
और ...
मुस्कान...मतलब
"आपको भी दीपावली की ढेर सी शुभ एवं मंगलकामना " "
बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteदीपावली की शृंखला में
पंच पर्वों की आपको शुभकामनाएँ।
सुन्दर पोस्ट ....हैप्पी दिवाली
ReplyDeleteसुंदर रचना । आपको सपरिवार दीप पर्व शुभ हो ।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर लिखी है आपने
ReplyDeleteकारण कुछ भी हो---दीपमालाऎ जलती रहें.
ReplyDeleteसुंदर रचनाएँ
ReplyDeleteBehad sunder prastuti... Aapko diwali parv ki shubhkamnaayein!!
ReplyDeletesundar prastuti...
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