Monday, 9 December 2013

तुम हो किश्ती की पतवार बनकर

जिन्दा रहने लगा वो मुझमे ख्याल बनकर 
छोड़े निशाँ भी उसने मुझमे सवाल बनकर 

एक वक्त था वो जब हम खुद में भी नहीं थे 
जुदा आज भी , जिन्दा तुम ख्याल बनकर

पलको पे ठहरा अक्स झिलमिल सितारे सा 
बजती रागिनी सी दिल का ख्याल बनकर 

जल उठे थे जुगनू सा चमकने की फिराक में 
जल रहे है आज भी खुद में सवाल बनकर

आईना ए ख्वाहिश, आइना हुए भूलकर खुदी
बिखरी किरचे भी लहू में बही सवाल बनकर

अब ,मैं हूँ संग बहता हुआ एक अहसास है
ख्याल से तुम हो किश्ती की पतवार बनकर .- विजयलक्ष्मी 

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