Wednesday, 18 December 2013

आ जाओ साथ निभाने मेरा...

गन्तव्य और मन्तव्य के साथ राह भी उसी जैसी पवित्र हो तो पाकीजगी की ख़ूबसूरती बढती है ..

जिस्म को रखकर किनारे गर साथ निभा सको तुम पाकीजगी से 
,
आ जाओ साथ निभाने मेरा, रूह को प्यास है पाकीजा अहसास की
.- विजयलक्ष्मी



उस तासीर का मजा ही बेनजीर खुदा सा है ,

जिसमे रूह खिलखिलाती है जिस्म जुदा सा है .- विजयलक्ष्मी





घूम गयी वो एक जादू की सी छड़ी रूह पर मेरी ,

मुलाकत ए मुहब्बत ए खुदा के निशाँ दिखाई दिए .


हैराँ हूँ जमाने के करतब देखकर आजकल मैं भी 


ऊँगली उठाई वहीँ जहां मुझे कहकशां दिखाई दिए .- विजयलक्ष्मी

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