Saturday, 26 May 2012

मन डोलत रही पर बोले नहीं .


अजान रहे पर अजान नहीं ..


अज्ञानी बने पर अज्ञानी नहीं

जो कभी उपजी मन में ,चुप 

समझे मन की कही अनकही .

 मुड देखूं कभी जो गलियन में

 कोई और नहीं ,कोई और नहीं .

 बस बोले नहीं मुख खोले नहीं ..

 राह मिली क्यूँ उस राह से ऐसे

 मन डोलत रही पर बोले नहीं ..--विजयलक्ष्मी .

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