मन डोलत रही पर बोले नहीं .
अजान रहे पर अजान नहीं ..
अज्ञानी बने पर अज्ञानी नहीं
जो कभी उपजी मन में ,चुप
समझे मन की कही अनकही .
मुड देखूं कभी जो गलियन में
कोई और नहीं ,कोई और नहीं .
बस बोले नहीं मुख खोले नहीं ..
राह मिली क्यूँ उस राह से ऐसे
मन डोलत रही पर बोले नहीं ..--विजयलक्ष्मी .
No comments:
Post a Comment