Sunday, 29 December 2013

क्यूँ इंतजार बस गया पलको पर

क्यूँ इंतजार बस गया पलको पर घर को छोडकर अपने ,
कभी मुस्कुराता सा कभी गुनगुनाता सा,तन्हा छोडकर हमे .--- विजयलक्ष्मी





यूँ कोहरे की चादर ओढकर छिपना सूरज का नहीं भाता हमको ,
उजाले की आँख मिचौली ये , कही अंधेरों में दम ही न तोड़ दे ,--- विजयलक्ष्मी




तेरे एतबार पर एतबार हुआ इसकदर खुद पे न हुआ था 
मौत को दगा देकर हम जिन्दगी की देहलीज में लौट आये .--- विजयलक्ष्मी




यूँही घूमते हुए चले आये थे हम तो शहर में तेरे ,
लौटने का रास्ता न मिला इसकदर अपनाया शहर ने तेरे .-- विजयलक्ष्मी




जुदा तो नहीं है हाल ए दिल अपना भी वल्लाह ,
हमे दिखने लगा हर सुरत में वही चेहरा अल्लाह .- विजयलक्ष्मी




जिन्दगी बता तुझे चाहिए और क्या 
मुहब्बत में इंतजार ए हद कोई नहीं होती .
तुझसे छिपाना क्या बताना क्या अब 
मुहब्बत की एतबार ए हद कोई नहीं होती -- विजयलक्ष्मी

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