Wednesday, 18 December 2013

कैसी बरसात आई

कटी आँखों में रात सारी ,
कैसी कयामत की ये रात आई .

बीतते नहीं लम्हे किसी तौर 
कैसी तन्हाई की ये रात आई .

उखड़े से पत्थर टूटे से रास्ते 
किस राह मंजिल की बात आई .

पिंजरे की मैना,पंख खो गये हैं
छिनते हौसलों की कैसी सौगात आई

सुना रहम दिल सा था बादल
मेरे घर न बरसा ,कैसी बरसात आई .- विजयलक्ष्मी

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