कटी आँखों में रात सारी ,
कैसी कयामत की ये रात आई .
बीतते नहीं लम्हे किसी तौर
कैसी तन्हाई की ये रात आई .
उखड़े से पत्थर टूटे से रास्ते
किस राह मंजिल की बात आई .
पिंजरे की मैना,पंख खो गये हैं
छिनते हौसलों की कैसी सौगात आई
सुना रहम दिल सा था बादल
मेरे घर न बरसा ,कैसी बरसात आई .- विजयलक्ष्मी
कैसी कयामत की ये रात आई .
बीतते नहीं लम्हे किसी तौर
कैसी तन्हाई की ये रात आई .
उखड़े से पत्थर टूटे से रास्ते
किस राह मंजिल की बात आई .
पिंजरे की मैना,पंख खो गये हैं
छिनते हौसलों की कैसी सौगात आई
सुना रहम दिल सा था बादल
मेरे घर न बरसा ,कैसी बरसात आई .- विजयलक्ष्मी
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