Monday 2 December 2013

और क्या मांगूं किसी से

छापेखाने में भेजा था रात को ,छप कर ही नहीं आया ,

आज सहर का अखबार अब तलक घर मेरे नहीं आया ...विजयलक्ष्मी




ये जो तस्वीर है मेरी आँखों में ,वाबस्ता हूँ इसीसे ,

दर्द औ रुसवाई मिल चुकी और क्या मांगूं किसी से ...विजयलक्ष्मी  



परों को खोलना क्या वजन अब तौलना क्या ,

शुरू हो चुकी जंग खुद से खुद की झूठ बोलना क्या 


खोजते खबर रहे उम्रभर अब खुद की खौलना क्या 


मुहब्बत रास कब दुनिया को ,नफरत घोलना क्या .- विजयलक्ष्मी 

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