छापेखाने में भेजा था रात को ,छप कर ही नहीं आया ,
आज सहर का अखबार अब तलक घर मेरे नहीं आया ...विजयलक्ष्मी
ये जो तस्वीर है मेरी आँखों में ,वाबस्ता हूँ इसीसे ,
दर्द औ रुसवाई मिल चुकी और क्या मांगूं किसी से ...विजयलक्ष्मी
परों को खोलना क्या वजन अब तौलना क्या ,
शुरू हो चुकी जंग खुद से खुद की झूठ बोलना क्या
खोजते खबर रहे उम्रभर अब खुद की खौलना क्या
मुहब्बत रास कब दुनिया को ,नफरत घोलना क्या .- विजयलक्ष्मी
आज सहर का अखबार अब तलक घर मेरे नहीं आया ...विजयलक्ष्मी
ये जो तस्वीर है मेरी आँखों में ,वाबस्ता हूँ इसीसे ,
दर्द औ रुसवाई मिल चुकी और क्या मांगूं किसी से ...विजयलक्ष्मी
परों को खोलना क्या वजन अब तौलना क्या ,
शुरू हो चुकी जंग खुद से खुद की झूठ बोलना क्या
खोजते खबर रहे उम्रभर अब खुद की खौलना क्या
मुहब्बत रास कब दुनिया को ,नफरत घोलना क्या .- विजयलक्ष्मी
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