हालत अच्छे हैं और विचार सच्चे ..
लंगड़ी देह के भीतर समूची रूह है बकाया
झांक लेती है नदी के मझदार से लहरों पर बैठकर उस पार
और क्षितिज पर झांकती है...सुबह की मंजिल हो जैसे
राहे तलाशते हैं कदम सहरा में धुल की आंधियों के बीच में
आँख में गिरी जो धुल नमी दे गयी थी
मेरे हाथ में खिंची चंद लकीरे ...ढूंढती है वजूद को
और सूरज मुंडेर पर बैठा है ...रौशनी को साथ में लेकर
सुखा रहा ख्वाब अपने पलकों के झरोखो पर
भावनाओ की डोर बांधकर गुनगुनाते है रागिनी अमन के नाम की
जल रहा है वतन भूख से और भीग रहा है बरसात में सडको पर पानी है ..और प्यास है बुझती नहीं खुद में कभी ...ये कैसा अजब संसार है ..
काव्य के खेत है और बीज शब्दों के लिए बो दिए पौध जो मन के अंगन में खिली .
आओ महक लेते है साथ में हम लोग ..बहुत दूर लगने लगी है राहे आजकल .-
सफर पर चल पड़े है नंगे पांव ही ...पथरीली राहे है और काँटों से भरी
सिद्ध गिद्ध की नजर भी उनपर है खड़ी .- विजयलक्ष्मी
लंगड़ी देह के भीतर समूची रूह है बकाया
झांक लेती है नदी के मझदार से लहरों पर बैठकर उस पार
और क्षितिज पर झांकती है...सुबह की मंजिल हो जैसे
राहे तलाशते हैं कदम सहरा में धुल की आंधियों के बीच में
आँख में गिरी जो धुल नमी दे गयी थी
मेरे हाथ में खिंची चंद लकीरे ...ढूंढती है वजूद को
और सूरज मुंडेर पर बैठा है ...रौशनी को साथ में लेकर
सुखा रहा ख्वाब अपने पलकों के झरोखो पर
भावनाओ की डोर बांधकर गुनगुनाते है रागिनी अमन के नाम की
जल रहा है वतन भूख से और भीग रहा है बरसात में सडको पर पानी है ..और प्यास है बुझती नहीं खुद में कभी ...ये कैसा अजब संसार है ..
काव्य के खेत है और बीज शब्दों के लिए बो दिए पौध जो मन के अंगन में खिली .
आओ महक लेते है साथ में हम लोग ..बहुत दूर लगने लगी है राहे आजकल .-
सफर पर चल पड़े है नंगे पांव ही ...पथरीली राहे है और काँटों से भरी
सिद्ध गिद्ध की नजर भी उनपर है खड़ी .- विजयलक्ष्मी
आपकी इस प्रस्तुति की चर्चा कल सोमवार [07.10.2013]
ReplyDeleteचर्चामंच 1391 पर
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नवरात्र की हार्दिक शुभकामनाओं सहित
सादर
सरिता भाटिया