सौगात ए मुहब्बत मिली मुस्करा रहा हूँ मैं ,
हाँ ,मुहब्बत हो गयी तुमसे, जिए रहा हूँ मैं .
लम्हात ए वक्त तुम संग जो मिल गये खुदारा,
मौसम ए बहार जिन्दगानी जिए जा रहा हूँ मैं .
तुम्हे शगल कहूं या कहूं मैं दीवानापन अपना
जिस दर तुम मिले मंजिल सा चले रहा हूँ मैं .
हर राह अब तो मेरी तेरी गली से होके गुजरी
रुकते नहीं कदम अब बढ़ता ही जा रहा हूँ मैं .
तुम जाम हो या नशा बन चुके हो खुदारा
समझ से परे हैं मगर हाँ ,पिए जा रहा हूं मैं - विजयलक्ष्मी
हाँ ,मुहब्बत हो गयी तुमसे, जिए रहा हूँ मैं .
लम्हात ए वक्त तुम संग जो मिल गये खुदारा,
मौसम ए बहार जिन्दगानी जिए जा रहा हूँ मैं .
तुम्हे शगल कहूं या कहूं मैं दीवानापन अपना
जिस दर तुम मिले मंजिल सा चले रहा हूँ मैं .
हर राह अब तो मेरी तेरी गली से होके गुजरी
रुकते नहीं कदम अब बढ़ता ही जा रहा हूँ मैं .
तुम जाम हो या नशा बन चुके हो खुदारा
समझ से परे हैं मगर हाँ ,पिए जा रहा हूं मैं - विजयलक्ष्मी
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