देख लो ,आप खुद ही चल दिए सफर पर ,
हमसे कहते रहे कदम रुकते नहीं तुम्हारे .
इंसानों में फितरत इंसानों सी ढूंढते रहे .
परिभाषबांची सीखचों में दीखते नहीं सारे.
बैठा दिया भट्टा लोकतंत्रीकरण का सभी ने
किस्सा ए व्यभिचार अख़बार लिखते नहीं सारे
दूसरे की झाँकने में मशगूल इस कदर
वही किस्से दुहराते खुद को दीखते नहीं सारे .
कैसी अजब बात है देह उपकरण बन गयी
परिणाम उसके बाद भी तो छिपते नहीं सारे .- विजयलक्ष्मी
हमसे कहते रहे कदम रुकते नहीं तुम्हारे .
इंसानों में फितरत इंसानों सी ढूंढते रहे .
परिभाषबांची सीखचों में दीखते नहीं सारे.
बैठा दिया भट्टा लोकतंत्रीकरण का सभी ने
किस्सा ए व्यभिचार अख़बार लिखते नहीं सारे
दूसरे की झाँकने में मशगूल इस कदर
वही किस्से दुहराते खुद को दीखते नहीं सारे .
कैसी अजब बात है देह उपकरण बन गयी
परिणाम उसके बाद भी तो छिपते नहीं सारे .- विजयलक्ष्मी
फिर नहीं बसते वो दिल जो इक बार उजड़ जाते हैं !
ReplyDeleteजनाजे को कितना भी सँवारो उसमें रूह नहीं आती !!