Saturday, 7 December 2013

देह उपकरण बन गयी

देख लो ,आप खुद ही चल दिए सफर पर ,
हमसे कहते रहे कदम रुकते नहीं तुम्हारे .

इंसानों में फितरत इंसानों सी ढूंढते रहे .
परिभाषबांची सीखचों में दीखते नहीं सारे.

बैठा दिया भट्टा लोकतंत्रीकरण का सभी ने 
किस्सा ए व्यभिचार अख़बार लिखते नहीं सारे

दूसरे की झाँकने में मशगूल इस कदर
वही किस्से दुहराते खुद को दीखते नहीं सारे .

कैसी अजब बात है देह उपकरण बन गयी
परिणाम उसके बाद भी तो छिपते नहीं सारे .- विजयलक्ष्मी

1 comment:

  1. फिर नहीं बसते वो दिल जो इक बार उजड़ जाते हैं !
    जनाजे को कितना भी सँवारो उसमें रूह नहीं आती !!

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