कलैंडर खामोश दीखता है ,उसपर सन्नाटा चीखता है ,
बोलती हैं दिन महीनों सप्ताह पखवाड़ो की कहानी
जिन्दगी के थमे से लम्हे दर्ज है लिए रवानी
बदल जायेगा वर्ष का कोना ...वही जिसपर लिखा अंग्रेजी खिलौना
सम्वत नहीं बदलेगा ,,संस्कृति नहीं बदलेगी
न बदलेंगे संस्कार ..इन्सान नहीं बदलेगा
नहीं बदलेगा मन का आकार
क्या कलैंडर अहसास बदल पायेगा
तेरा ये खूबसूरत अंदाज बदल पायेगा
सहर के सूरज का निकलना बदल पायेगा
नहीं बदल पायेगा कभी मुझे या तुमको बदल पायेगा
बहुत कुछ बदलता सा दीखता है
पीढियां सीढियां ..
जिन्दगी के उतार चढाव
वर्ष लिखा एक कोना बदल जायेगा हर साल की तरह ..
बदलेगा ..हमारी जिन्दगी का चलता लम्हा
उम्र का पडाव
नहीं बदलेगी बरगद की छाँव
बडो का आशीष
न सर्दियों के मौसम
गर्मियों की चिलचिलाती धूप
बसंत की गुनगुनाती हवा
न होली के रंग
न दीयो का साथ
न तारों भरी रात
न चंदा चांदनी का साथ
न आंगन की बरसात
न फूलों का खिलना
न तितलियों का इठलाना
न पंछियों का गाना
न त्योहारों की बौछार
न घर संसार
न मैं न तुम
कुछ नहीं बदलेगा
बस बदलेगा हमारा और उम्रदराज होने की सीढी का एक पायदान .-- विजयलक्ष्मी
" आज की सहर आंगन में बरस रही ,
जिन्दगी की अंतिम घड़ी गिन रही है
सूरज की महफिल में कुछ बादल भी आये हैं
बेला विदाई है गुजरे साल की ...नई उम्मीद की नींव चिन रही है
नई नई सी खुशिया नया नया तराना
छेड़ेगा सूरज भी क्या फिर से नया अफसाना
चिड़िया सुनाएंगी नया कोई गाना
फूलों को सीखना है धीरे धीरे मुस्कुराना
जीवन से आस हो ...जीवन में हर्ष हो
तुमको भी मुबारक नववर्ष हो ."-- विजयलक्ष्मी
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