मर गयी तुम ,
भला हुआ ..क्या रूह को चैन मिला तुम्हारी ?
भला हुआ .. नियम पर चस्पा होगया नाम तुम्हारा ..
इन्साफ मिला पूरा तुम्हे क्या ?
मोमबत्तिया जल उठी लाखों हर चौराहे हजारो हाथो में
दहशत का अँधेरा खत्म हुआ क्या ?
तुम्हारी बरसी हो गयी ..हो गये सभी अनुष्ठान पूरे
स्वर्ग की प्राप्ति हुयी क्या ..
या चैन मिला माँ को पिता की आंख सूखी क्या ?
घर से निकलने की सुरक्षा बढ़ी क्या ?
घर की बेटी की लाचारी घटी ?
जिम्मेदारी में कौन सी कमी अभी देखि क्या ?
सांसों को छूट मिली या मिलाचैन से जीने का फरमान ..
कितनी बेटी हो रही है ..आज भी दरिंदों के हाथ बेजान ..
तन ही नहीं मन भी मारते हैं ..
व्यस्क अगर बेशर्म हुयी तो क्या अवयस्क को छोड़ देते है हैवान ?
सवाल ...खड़े हैं कितने औरत के रंग ढंग पर ..
उसकी वेशभूषा और जीने के ढंग पर ..
कोई सवाल क्यूँ नहीं खड़ा होता दरिंदगी के वंश पर
क्यूँ कोई बलात्कारी छूट जाता है पैरोल पर
लडकी से पूछते है सवाल पुरुष वकीलों की जबान बनकर दलाल ..
जैसे बिन पैसे मिल गया हो मुर्गा करने को हलाल
किसने पहले छेड़ा कैसे छेड़ा क्या छेड़ा ..
उनसे पूछे किसी दिन बहन या माँ हो गर खड़ी उसी कटघरे में ..तो क्या ?
बदलते नहीं तेवर जैसे मिल गया खाने को घेवर ..
बेशर्म बेहया उनसे बड़े वो ..जो दौड़ते है बचाने उन्हें जो दोषी करते जो बलात्कार
क्यूँ नहीं लगते उनको जूते चार ..उनसे कहो ..
पहले तन खोया ..अस्मत खोई ,समाज में खोया आत्मसम्मान ..
भरी अदालत न्याय की खातिर झेलती कितने ही अपमान
तिसपर एक सवाल ...क्यूँ गयी तुम अकेली घर के बाहर ..??????
घर में कैद रहो ,नौकरी करके आजाद क्यूँ होने की चाहत ...गुलाम रहो ,
अपनी हर वस्तु की खातिर फैलाओ हाथ
क्या करोगी लेकर कुछ कौन तुम्हारे साथ ..
कुँवारी लडकी हो ..कल को कैसे होंगे पीले हाथ
घर से निकली निगाह में आओगी ..
कैसी कैसी निगाहे निहारेगी कैसे बच पाओगी
तुम लडकी हो खुद को बदलो .......दुनिया नहीं बदल पाओगी
आधी आबादी नारी को दबाते है ..
नारी खत्म तो तुम भी खत्म हो जाओगे
याद रखो ...सुधार नारी परिवर्तन से नहीं ..
सबके परिवर्तन से होगा ..
क्यूँ नहीं कहते दरिंदो से साबित करो तुम इंसानी शक्ल में इन्सान ही हो
अभी तक बने हैवान नहीं हो
कितने चेहरे लगे हैं पुरुष के शरीर पर
कितना मीठा बोलता है महफिल में बैठकर
घर की देहलीज के भीतर और बाहर जैसे स्याह श्वेत ...
न उम्र की राजनीति कोई कर सके ..
जुर्म किया है तो सजा भी भुगतो ..
मौत से क्या होगा ....
नपुंसक बनाकर छोड़ दो ,
मानवाधिकार हनन.... उनके सभी सामाजिक अधिकार खत्म !!- विजयलक्ष्मी
भला हुआ ..क्या रूह को चैन मिला तुम्हारी ?
भला हुआ .. नियम पर चस्पा होगया नाम तुम्हारा ..
इन्साफ मिला पूरा तुम्हे क्या ?
मोमबत्तिया जल उठी लाखों हर चौराहे हजारो हाथो में
दहशत का अँधेरा खत्म हुआ क्या ?
तुम्हारी बरसी हो गयी ..हो गये सभी अनुष्ठान पूरे
स्वर्ग की प्राप्ति हुयी क्या ..
या चैन मिला माँ को पिता की आंख सूखी क्या ?
घर से निकलने की सुरक्षा बढ़ी क्या ?
घर की बेटी की लाचारी घटी ?
जिम्मेदारी में कौन सी कमी अभी देखि क्या ?
सांसों को छूट मिली या मिलाचैन से जीने का फरमान ..
कितनी बेटी हो रही है ..आज भी दरिंदों के हाथ बेजान ..
तन ही नहीं मन भी मारते हैं ..
व्यस्क अगर बेशर्म हुयी तो क्या अवयस्क को छोड़ देते है हैवान ?
सवाल ...खड़े हैं कितने औरत के रंग ढंग पर ..
उसकी वेशभूषा और जीने के ढंग पर ..
कोई सवाल क्यूँ नहीं खड़ा होता दरिंदगी के वंश पर
क्यूँ कोई बलात्कारी छूट जाता है पैरोल पर
लडकी से पूछते है सवाल पुरुष वकीलों की जबान बनकर दलाल ..
जैसे बिन पैसे मिल गया हो मुर्गा करने को हलाल
किसने पहले छेड़ा कैसे छेड़ा क्या छेड़ा ..
उनसे पूछे किसी दिन बहन या माँ हो गर खड़ी उसी कटघरे में ..तो क्या ?
बदलते नहीं तेवर जैसे मिल गया खाने को घेवर ..
बेशर्म बेहया उनसे बड़े वो ..जो दौड़ते है बचाने उन्हें जो दोषी करते जो बलात्कार
क्यूँ नहीं लगते उनको जूते चार ..उनसे कहो ..
पहले तन खोया ..अस्मत खोई ,समाज में खोया आत्मसम्मान ..
भरी अदालत न्याय की खातिर झेलती कितने ही अपमान
तिसपर एक सवाल ...क्यूँ गयी तुम अकेली घर के बाहर ..??????
घर में कैद रहो ,नौकरी करके आजाद क्यूँ होने की चाहत ...गुलाम रहो ,
अपनी हर वस्तु की खातिर फैलाओ हाथ
क्या करोगी लेकर कुछ कौन तुम्हारे साथ ..
कुँवारी लडकी हो ..कल को कैसे होंगे पीले हाथ
घर से निकली निगाह में आओगी ..
कैसी कैसी निगाहे निहारेगी कैसे बच पाओगी
तुम लडकी हो खुद को बदलो .......दुनिया नहीं बदल पाओगी
आधी आबादी नारी को दबाते है ..
नारी खत्म तो तुम भी खत्म हो जाओगे
याद रखो ...सुधार नारी परिवर्तन से नहीं ..
सबके परिवर्तन से होगा ..
क्यूँ नहीं कहते दरिंदो से साबित करो तुम इंसानी शक्ल में इन्सान ही हो
अभी तक बने हैवान नहीं हो
कितने चेहरे लगे हैं पुरुष के शरीर पर
कितना मीठा बोलता है महफिल में बैठकर
घर की देहलीज के भीतर और बाहर जैसे स्याह श्वेत ...
न उम्र की राजनीति कोई कर सके ..
जुर्म किया है तो सजा भी भुगतो ..
मौत से क्या होगा ....
नपुंसक बनाकर छोड़ दो ,
मानवाधिकार हनन.... उनके सभी सामाजिक अधिकार खत्म !!- विजयलक्ष्मी
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