"माहताब शर्माता है रंग ए वफा देखकर उसकी ,
चांदनी को भी रश्क है समझ आने लगा अब तो.
देखकर पूनम सा उजला रंग ए मुहब्बत उसका
ढल गया चाँद,रंग ए चांदनी फीका लगा अबतो .
होश में आने वक्त लगेगा पखवाडा पूरा उसको ,
दीदार ए कहन कहे,अक्स पलको में सजा अबतो .
फूल खिल गये श्वेतवर्ण रात सितारों की जगह,
हर सुबह सिंदूरी सी ,सूरज महकता लगा अबतो .
हरित बाना पहन धरती इठलाई सी है आजकल,
ख्वाब सा जगा था आँख में,हकीकत लगा अब तो."
---- विजयलक्ष्मी
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