Tuesday, 17 December 2013

ख्वाब सा जगा था आँख में..





"माहताब शर्माता है रंग ए वफा देखकर उसकी ,
चांदनी को भी रश्क है समझ आने लगा अब तो.

देखकर पूनम सा उजला रंग ए मुहब्बत उसका 
ढल गया चाँद,रंग ए चांदनी फीका लगा अबतो .

होश में आने वक्त लगेगा पखवाडा पूरा उसको ,
दीदार ए कहन कहे,अक्स पलको में सजा अबतो .

फूल खिल गये श्वेतवर्ण रात सितारों की जगह,
हर सुबह सिंदूरी सी ,सूरज महकता लगा अबतो .

हरित बाना पहन धरती इठलाई सी है आजकल,
ख्वाब सा जगा था आँख में,हकीकत लगा अब तो."

---- विजयलक्ष्मी

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