वही दीवानगी थोड़ी आवारगी ..शिकायत और शिकवे से ,
कोई दीप जलता सा शमा पर परवाना जलता सा
मचलते कुछ अरमान दिल के थे ..मगर चुप्पी लगी भरी
किया सम्वाद जब जरी ..खौफ था दर्द इन्तजार का
बस सम्वाद ही हुआ भारी ..मनो में रंज नहीं मगर ..
रंग ए वफा संग अहसास था तारी ...और...
धीरे से मुस्कुराकर चल दिए बिन मुड़े ही "वो ".- विजयलक्ष्मी
कोई दीप जलता सा शमा पर परवाना जलता सा
मचलते कुछ अरमान दिल के थे ..मगर चुप्पी लगी भरी
किया सम्वाद जब जरी ..खौफ था दर्द इन्तजार का
बस सम्वाद ही हुआ भारी ..मनो में रंज नहीं मगर ..
रंग ए वफा संग अहसास था तारी ...और...
धीरे से मुस्कुराकर चल दिए बिन मुड़े ही "वो ".- विजयलक्ष्मी
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