हथेली पर हमारी कुछ आड़ी टेढ़ी सी लकीरे हैं ,
पढने की चाहत बहुत रही जाने किसने उकेरी हैं.
उकेर कर मिला नहीं ,किसी के पास पता नहीं ,
अब हमारे नयन में तस्वीर और हिस्से फकीरी है.
कहीं किस्सा ए महफ़िल शोहरत न मिल जाये
पढ़ लिया गर किसी ने भी ये दुनिया बेनजीरी है
आँख का आंसू सुखाया हवा के मुहाने बैठकर
आग लेकिन बुझ सकी न धुएं ने दुनिया बिखेरी है
रास्ता कोई सीधा पहुँचा कब जानिब ए मंजिल
वाबस्ता हर कदम मिलेगा हर राह भीड़ घनेरी है
जिधर देखिये, भूख रोती है देह की आग झुलसाती
मतलबी आपाधापी में इन्साँ ने दुनिया ही बिखेरी है .- विजयलक्ष्मी
पढने की चाहत बहुत रही जाने किसने उकेरी हैं.
उकेर कर मिला नहीं ,किसी के पास पता नहीं ,
अब हमारे नयन में तस्वीर और हिस्से फकीरी है.
कहीं किस्सा ए महफ़िल शोहरत न मिल जाये
पढ़ लिया गर किसी ने भी ये दुनिया बेनजीरी है
आँख का आंसू सुखाया हवा के मुहाने बैठकर
आग लेकिन बुझ सकी न धुएं ने दुनिया बिखेरी है
रास्ता कोई सीधा पहुँचा कब जानिब ए मंजिल
वाबस्ता हर कदम मिलेगा हर राह भीड़ घनेरी है
जिधर देखिये, भूख रोती है देह की आग झुलसाती
मतलबी आपाधापी में इन्साँ ने दुनिया ही बिखेरी है .- विजयलक्ष्मी
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