ए काश तू आइना ही होता तो अच्छा था ,
ए काश तू खुदा ही होता तो भी अच्छा था
ए काश तू साँस बनकर न बहता तो ही अच्छा था
हर टुकड़ा वजूद का काप रहा है बेसहारा सा
मुझमे अर्श से फर्श तक समाया न होता तो अच्छा था
धमनियों न बहता बिक जाता बाजार मे अच्छा था
जो बहता है दर्द बनकर वो न बहता तो अच्छा था
जिबह करके हवा में जहर न मिलाता तो अच्छा था
चौराहे पर टंगी लाश के सिवा बचा क्या है ...
चिता पर रखकर खुद ही मुझे ............- विजयलक्ष्मी
ए काश तू खुदा ही होता तो भी अच्छा था
ए काश तू साँस बनकर न बहता तो ही अच्छा था
हर टुकड़ा वजूद का काप रहा है बेसहारा सा
मुझमे अर्श से फर्श तक समाया न होता तो अच्छा था
धमनियों न बहता बिक जाता बाजार मे अच्छा था
जो बहता है दर्द बनकर वो न बहता तो अच्छा था
जिबह करके हवा में जहर न मिलाता तो अच्छा था
चौराहे पर टंगी लाश के सिवा बचा क्या है ...
चिता पर रखकर खुद ही मुझे ............- विजयलक्ष्मी
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