वाह रे समाज ,
स्वतन्त्रता का मायने शराब किसने दिए ,
आजादी के मानक महफिल किसने बनाये
मुजरिम कौन ?..स्त्री ???...या पुरुष ???..क्या कहा जाये
हमारी संस्कृति के निवालो को मदिरा कबाब किसने दिखाए
बराबरी हाँ ..बराबरी तो खुद को नहीं ..औरत को भी लिए बुलाये
फिर खेल देह के किसने सही ठहराए
जब खेल मन मुताबिक तो भी चरित्रहीना ,,,
न माने तो भी कुलटा ही कहलाये
नियन्त्रण नहीं खुद पर फिर...गलत मगर औरत ही कहाए
खुद लांघे दस खाट पुरुष निर्लज्ज नहीं है
औरत ने नजर भी उठाई तो ..गुनहगार बन जाये .
वाह रे चरित्र ...तेरी परिभाषा ..क्यूँ नर नारी पर बदल बदल जाए
बेहोश पड़ी नारी से खेलो मनरंगा खेल ...मगर बलात्कारी न कहा जाए .
जाग उठी अंतरात्मा हवस पूरी करके ..
पहले जब सोई थी तब .....उसे क्या कहा जाए .
शोषण और पोषण को ...क्या नाम दिया जाए ,
मर्यादा को किया तार तार ..गलत किसको कहा जाये ??? -- विजयलक्ष्मी
आजाद भगत को हम नमन भी करते हैं ,
बिकती औरत बाजार में ..बेचता कौन है
बेबसी के हालत को सींचता कौन है
बहुत है जो पूजते है रिश्तों को पवित्रता से ..
दोषी तो व्ही है जो ....लीहरे लीहरे खीजता है
बहुत है दुनिया में नजर पाक है जिनकी ..
ये किसने कहा ..औरत दुश्मन नहीं औरत की
हकीकत कह दूं ..दुश्मन खुद की औरत खुद ही होती है
विश्वाश में जिकर विशवास में ही मरती है .- विजयलक्ष्मी
स्वतन्त्रता का मायने शराब किसने दिए ,
आजादी के मानक महफिल किसने बनाये
मुजरिम कौन ?..स्त्री ???...या पुरुष ???..क्या कहा जाये
हमारी संस्कृति के निवालो को मदिरा कबाब किसने दिखाए
बराबरी हाँ ..बराबरी तो खुद को नहीं ..औरत को भी लिए बुलाये
फिर खेल देह के किसने सही ठहराए
जब खेल मन मुताबिक तो भी चरित्रहीना ,,,
न माने तो भी कुलटा ही कहलाये
नियन्त्रण नहीं खुद पर फिर...गलत मगर औरत ही कहाए
खुद लांघे दस खाट पुरुष निर्लज्ज नहीं है
औरत ने नजर भी उठाई तो ..गुनहगार बन जाये .
वाह रे चरित्र ...तेरी परिभाषा ..क्यूँ नर नारी पर बदल बदल जाए
बेहोश पड़ी नारी से खेलो मनरंगा खेल ...मगर बलात्कारी न कहा जाए .
जाग उठी अंतरात्मा हवस पूरी करके ..
पहले जब सोई थी तब .....उसे क्या कहा जाए .
शोषण और पोषण को ...क्या नाम दिया जाए ,
मर्यादा को किया तार तार ..गलत किसको कहा जाये ??? -- विजयलक्ष्मी
आजाद भगत को हम नमन भी करते हैं ,
बिकती औरत बाजार में ..बेचता कौन है
बेबसी के हालत को सींचता कौन है
बहुत है जो पूजते है रिश्तों को पवित्रता से ..
दोषी तो व्ही है जो ....लीहरे लीहरे खीजता है
बहुत है दुनिया में नजर पाक है जिनकी ..
ये किसने कहा ..औरत दुश्मन नहीं औरत की
हकीकत कह दूं ..दुश्मन खुद की औरत खुद ही होती है
विश्वाश में जिकर विशवास में ही मरती है .- विजयलक्ष्मी
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