खौफ ए खफा से हैं मगर दिल मानता नहीं ,
राह कौनसी जाना अब तलक पहचानता नहीं .
वो कौन सफर है चल पड़ी डगर जिधर जिधर
मोड़ कहाँ ठहर गये हैं कोई पहचानता नहीं .
ये नफरतों की दुनिया, हुयी मुहब्बत जुदा जुदा
रफ्तार रफ्ता रफ्ता राह कोई पहचानता नहीं
अधेरों का बसर अभी और कितना मिलेगा
रौशनी की दुनिया लापता क्यूँ पहचानता नहीं .--- विजयलक्ष्मी
राह कौनसी जाना अब तलक पहचानता नहीं .
वो कौन सफर है चल पड़ी डगर जिधर जिधर
मोड़ कहाँ ठहर गये हैं कोई पहचानता नहीं .
ये नफरतों की दुनिया, हुयी मुहब्बत जुदा जुदा
रफ्तार रफ्ता रफ्ता राह कोई पहचानता नहीं
अधेरों का बसर अभी और कितना मिलेगा
रौशनी की दुनिया लापता क्यूँ पहचानता नहीं .--- विजयलक्ष्मी
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