Friday, 20 December 2013

राह कौनसी जाना ..

खौफ ए खफा से हैं मगर दिल मानता नहीं ,
राह कौनसी जाना अब तलक पहचानता नहीं .

वो कौन सफर है चल पड़ी डगर जिधर जिधर 
मोड़ कहाँ ठहर गये हैं कोई पहचानता नहीं .

ये नफरतों की दुनिया, हुयी मुहब्बत जुदा जुदा
रफ्तार रफ्ता रफ्ता राह कोई पहचानता नहीं 

अधेरों का बसर अभी और कितना मिलेगा 
रौशनी की दुनिया लापता क्यूँ पहचानता नहीं .--- विजयलक्ष्मी

No comments:

Post a Comment