Thursday, 19 December 2013

दिल को यूँही बेकरार चाहता हूँ ..

कोई हसरत बकाया क्या तुमसे जुदा हो ,
अब इस दिल को यूँही बेकरार चाहता हूँ .

तू मुस्कराए लम्हा लम्हा जिन्दगी संग
अब खुद से भी यही एतबार चाहता हूँ .

पिसने डरते रही जो हिना डाल पर ही ,
हाथो पर उसी का सा निखार चाहता हूँ .

खुशिया मिलनी दुश्वार जमाने में हुयी 
अब दिलचस्प गम बेशुमार चाहता हूँ .

बसेरा ख्वाब में होता भी कैसे बताओ
खोया जो सफर नींद का हरबार चाहता हूँ .
.-- विजयलक्ष्मी

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