Tuesday, 24 December 2013

इंतजार बस गया है आँखों में क्यूँ ?

इंतजार बस गया है आँखों में क्यूँ ?
मैंने तो माँगा भी नहीं कभी तुमसे 


रूह तलाश लेगी सकूं एतबार में भी 
दर्द ए बयार मिलेगी जब कहीं तुमसे 


बहार नाराज सी लगती रही चमन से 
ओस से बिखरे मिले हैं कभी तुमसे


सूरज बन छाये हो हस्ती पर धरा की 
सर्द मौसम नर्म अहसास वही तुमसे 


दूरिया है कहाँ दिखती है मगर जो,सुनो 
फलसफो का फासला कहूं क्यूँ अभी तुमसे .-विजयलक्ष्मी 

No comments:

Post a Comment