Monday, 23 December 2013

सत्य तो सूली पर ही चढ़ा है सदा से

सत्य तो सूली पर ही चढ़ा है सदा से 
झूठ ने कंधा दिया हर बार है 

कभी राम को बनवास दिया कभी कृष्ण को रणछोड़ 
कैसी हुयी मानवता दिया सबको पीछे छोड़ 
ईसा चढ़े जब से उतारा नहीं आजतक किसी ने भी 
पहले मौत का जश्न होगा फिर जिन्दा होने का स्वांग 
जिन्दे को मारते रहे ..मारकर पूजते हैं बताकर भगवान 
वाह रे तेरी माया निराली है इंसान .- विजयलक्ष्मी





...अनुयायी ही चढाते है सूली पर ..
ईमान के मारे दौलत से नहीं बिके जो बिक जाते है ईमान पर 
उन्हें खुदा बनके पूजते हैं ..मानवता खातिर दर्द में भी मिठास है बस पूछते हैं 
खुद नहीं चढ़ते कभी सूली 
फिर ईसा बनाकर सूली पर ईमान को चढाते है जिसे कहते हैं सभ्य समाज 
चलो कुछ इंसानों को आवाज लगते है आज ,
कुछ इंसान मिल गये गर ईसा को सूली से उतरवाते है आज ..
..इसी इंतजार में जिन्दगी बीती युग बीतचले
सब भूल गये सूली का दर्द ...मगर ईसा उस हालात से ज्यादा तडपते होगे आज -- विजयलक्ष्मी

No comments:

Post a Comment