"इस हद तक मुझसे गुजर चुका है दर्द ,
हद ए इन्तेहाँ से भी अब डरने लगा है दर्द ."- विजयलक्ष्मी
"आज फिर नई गली मेरे दर से आ मिली , देखते रह गए ,
कुछ अपनापन कुछ अंजानापन कुछ अजीब सी ,देखते रह गए ."--विजयलक्ष्मी
"दर्द ए अहसास कलम अब घुल चुका इस कदर ,
दर्द है कि नहीं अब तो ये, अहसास ही खो गए हैं ."-- विजयलक्ष्मी
"कोई मिसाल बाकी कहूँ क्या तेरे इन्तेहाँ की अब ,
मेरे लहू में तू लहू बन के ही बह रहा है मुझमे ."--विजयलक्ष्मी
हद ए इन्तेहाँ से भी अब डरने लगा है दर्द ."- विजयलक्ष्मी
"आज फिर नई गली मेरे दर से आ मिली , देखते रह गए ,
कुछ अपनापन कुछ अंजानापन कुछ अजीब सी ,देखते रह गए ."--विजयलक्ष्मी
"दर्द ए अहसास कलम अब घुल चुका इस कदर ,
दर्द है कि नहीं अब तो ये, अहसास ही खो गए हैं ."-- विजयलक्ष्मी
"कोई मिसाल बाकी कहूँ क्या तेरे इन्तेहाँ की अब ,
मेरे लहू में तू लहू बन के ही बह रहा है मुझमे ."--विजयलक्ष्मी
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