हम अभी भी कांच है न हीरा सा तराशा है किसी ने
ये अहसास हुआ अब है जब खुद को तलाशा है हमने ..
जख्मों को लिखना औरों के खुशी ढूंढें जमाना भी गर
मुकम्मल जहाँ बहुत दूर फलक पर बसा है कहीं जाकर ..-- विजयलक्ष्मी
ये अहसास हुआ अब है जब खुद को तलाशा है हमने ..
जख्मों को लिखना औरों के खुशी ढूंढें जमाना भी गर
मुकम्मल जहाँ बहुत दूर फलक पर बसा है कहीं जाकर ..-- विजयलक्ष्मी
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