कलम से..
Tuesday, 11 September 2012
निकहत ए गुल ..
निकहत ए गुल होती ही मन से है ,
वर्ना चमन में गुल बेखूश्बू भी हुआ करते हैं ...
कुछ को भाती ही नहीं खुशबू फैले ,
दुश्मन इसी निकहत के कारण हुआ करते हैं .-विजयलक्ष्मी
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