तलाश राह ए मंजिल औ कदमों का क्या करें ,
ठहरने का अभी मुकाम ,कदमों तले छिपा है .
ढहने लगेगी दीवारें भी किसी रोज भूकम्प से ,
जो कहीं नहीं है वो बस परछाइयों में छिपा है .
मौत को भी एक बार धोखा तो दे दूँ मगर ,
धोखा कहाँ जाने किन गहराइयों में छिपा है .
मजबूर हम भी है आदत ए शुमारी से अपनी ,
कमबख्त कायर न हुए,लहू कुछ ऐसा रंगा है .-- विजयलक्ष्मी
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