Monday, 17 September 2012

सोचो क्यूँ है कांटे संग गुलाब के ..





















सोचो ,क्यूँ हैं कांटे संग गुलाब के ,
कैसा खालीपन है बिन इन्कलाब के ?

मंजिलों कि राह आसां नहीं होती 
क्यूँ सूनापन रोता बिन सैलाब के ?

रिश्ता रूहानी सबब क्यूँ हुआ 
क्यूँकर सिमटी दुनिया बिन ख्वाब के ?


शून्य पसरा क्यूँ समन्दर के खारेपन सा
कमल खिलता कब बिन तालाब के ?.-विजयलक्ष्मी 

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