सोचो ,क्यूँ हैं कांटे संग गुलाब के ,
कैसा खालीपन है बिन इन्कलाब के ?
मंजिलों कि राह आसां नहीं होती
क्यूँ सूनापन रोता बिन सैलाब के ?
रिश्ता रूहानी सबब क्यूँ हुआ
क्यूँकर सिमटी दुनिया बिन ख्वाब के ?
शून्य पसरा क्यूँ समन्दर के खारेपन सा
कमल खिलता कब बिन तालाब के ?.-विजयलक्ष्मी
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