हाँ वट वृक्ष का समूह सा खड़े है हम, जड़े गहरी है बहुत ,
वक्त का तकाजा है चुप रहकर करे इंतजार ए वक्त कोई ,
कौन मुकम्मल दरख्त की छांव से भटके नहीं ...धूप में ,
गुम न हों बेखबर सी जिंदगी के बेबस से सफर पे कोई .
हर मुक्कमल जहाँ मिले हर राह को ..पथ रंजित न हों
न लहू गिरे कहीं धरती रक्तवर्ण रंजित निशाँ न पाए कोई .
सभ्यता के देश में बिखरा न हों कोई चमन ..न बागबाँ ,
रूठ कर बिछड़ न टूटे सितारा अपने आसमानों से कोई .
.-- विजयलक्ष्मी
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