सबको खुद की पड़ी है सच है क्यूँ सोचे कोई किसी की ,
पिंजरे की मैना रोये भी कैसे भला...सैयाद का हक है .
तू शिकारी है कर शिकार क्या लेना तुझको भूख लगी ,
जुनूं बोलता है जमीर भी खामोश है ये उसका हक है .-- विजयलक्ष्मी
होश आने तो दिया कर राहों पे खड़े थे हम ,
मालूम तो हों खत में लिखा क्या था ,
या खुदा रहम कर आज तो मेरे मालिक ,
जुनूं ए हक की इतनी तासीर तो न दिखा .विजयलक्ष्मी
रुक जरा इतना अफ़सोस तो न कर ,
यहाँ भी अँधेरा कर दिया तुमने ..
कोई रौशनी बाकी न छोड़ी कहीं ,
इतनी उदासी न भेज जरा ,
खबर देने में जल्दी कर दी तुमने .विजयलक्ष्मी
पिंजरे की मैना रोये भी कैसे भला...सैयाद का हक है .
तू शिकारी है कर शिकार क्या लेना तुझको भूख लगी ,
जुनूं बोलता है जमीर भी खामोश है ये उसका हक है .-- विजयलक्ष्मी
होश आने तो दिया कर राहों पे खड़े थे हम ,
मालूम तो हों खत में लिखा क्या था ,
या खुदा रहम कर आज तो मेरे मालिक ,
जुनूं ए हक की इतनी तासीर तो न दिखा .विजयलक्ष्मी
रुक जरा इतना अफ़सोस तो न कर ,
यहाँ भी अँधेरा कर दिया तुमने ..
कोई रौशनी बाकी न छोड़ी कहीं ,
इतनी उदासी न भेज जरा ,
खबर देने में जल्दी कर दी तुमने .विजयलक्ष्मी
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